संस्कृत में कथा प्रसार यह कार्यक्रम संस्कृत शिक्षण तथा प्रचार के लिए अद्भुत परिणामकारी होगा। इस एक कार्यक्रम से ही पूरे देश में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में करोड़ों घरों में संस्कृत का प्रवेश होगा। संस्कृत बोली जा रही है, आज भी संस्कृतभाषी बच्चे हैं, मैं भी पढ़ सकता हूँ ऐसा विचार का प्रसार, विद्यालयों में संस्कृत माध्यम से शिक्षण के आरंभ के लिए अनुकूल वातावरण, शिक्षकों का भाषाभ्यास, शुद्ध संस्कृत भाषा के बार बार सुनने की सबकी अपेक्षा पूर्ति, संस्कृत छात्रों के लिए परिश्रम के प्रदर्शन का अवसर, संस्कृत भारती, विद्या भारती इत्यादि संगठनों के कार्यकर्ताओं की शक्ति व क्षमता बढ़ाने का पर्याप्त अवसर, विश्वविद्यालयों में छात्र शक्ति अर्जित करने के मार्ग, ऐसे न जाने कितने परिणाम देने वाला यह सिद्ध होगा।
गत 25 वर्षों में संभाषण संदेश के बालमोदिनी के नाम से लगभग एक हजार कथाएँ प्रकाशित की गई हैं जो www.sambhashansandesha.in वेबसाइट पर उपलब्ध हैं वहाँ से यथेष्ट ले सकते हैं। संस्कृत शिक्षक अपने विद्यालय के छात्रों द्वारा, संस्कृत प्रेमीजन अपने पुत्र- पौत्र-नाती इत्यादि के द्वारा अथवा अपने घर के समीपस्थ बच्चों के द्वारा कथा बोलने का अभ्यास करवाएँ, बच्चे कथा याद करके बोलें तो और प्रभावकारी होगा। यह कार्य करने या करवाने के लिए बच्चों या बड़ो का संस्कृत ज्ञान होना अनिवार्य नहीं है, केवल देवनागरी लिपि में लिखी हुई कथा को पढ़ने का सामर्थ्य होना चाहिए। ऐसे बच्चों के द्वारा बोली गई कथाओं का वीडियो/ऑडियो बनायें। यदि बच्चा कंठस्थ कर सकता है तो वीडियो और केवल देखकर पढ सकता है तो ऑडियो बनाकर सोशल मीडिया अर्थात् फेसबुक, व्हाट्सएप ग्रुप, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, कू, सिग्नल, ट्विटर इत्यादि पर भेजें, यह कार्य बच्चे, छात्र, अभिभावक, शिक्षक कोई भी कर सकता है। एक बच्चा अनेक कथाएँ भी याद करके और अभ्यास करके बोल सकता है। यह कार्य अधिकाधिक लोग करें जिससे संस्कृत अभ्यास और प्रचार अधिक हो सके।
संभाषण संदेश के बालमोदिनी से ही कथा क्यों लेना? ऐसा कहने के पीछे एकमात्र कारण है कि बालमोदिनी कथाओं की भाषा सरल और शुद्ध है। आवश्यक हो तो अन्य पुस्तकों से भी कथाएँ ली जा सकती हैं किंतु उनकी भाषा भी सरल, सुबोध और शुद्ध हो। कथा का वीडियो बनाते समय कथा के अंत में संभाषण संदेश के किस वर्ष के किस अंक से लिया गया है ऐसा उल्लेख करें तो अच्छा रहेगा क्योंकि यदि कोई कथा का लिखित रूप लेना चाहता है तो वेबसाइट से ले सकता है। बालकथा की और उपलब्ध पुस्तकों से भी कथाएँ ली जा सकती हैं।
किसी विद्यालय के शिक्षक / शिक्षिका कथाकथन वीडियो प्रतियोगिता का आयोजन करें तो अच्छा होगा। मेरे विद्यालय के 1008 या 508 या 108 छात्रों के द्वारा कथाओं का प्रसारण होगा ऐसा संकल्प पूर्वक किया जाए तो अद्भुत परिणामकारी होगा। यह कार्य सरस्वती माँ की पूजा के समान श्रद्धा-भाव से करना चाहिए। एक ही छात्र अनेक कथाएँ या एक ही कथा अनेक छात्र भी बोल सकते है। मेरे विद्यालय के छात्रों के द्वारा 1008 या 108 कथाओं का प्रसारण मैं करवाउंगा/करवाऊंगी - ऐसी प्रतिज्ञा भी शिक्षक कर सकते हैं। शिक्षकों के समान संस्कृतभारती के कार्यकर्ता भी नगर/बस्ती के अनुसार सामूहिक योजना बनाकर बच्चों के द्वारा वीडियो/ऑडियो बनवाकर प्रसारित करवा सकते हैं। छात्रों की सुविधा के लिए शिक्षक कथाओं का ऑडियो बनाकर छात्रों को भेजें किन्तु छात्रों की सभी कथाएँ एक साथ एक ही जगह प्रसारित न करें। ऐसा करना इस योजना की मूल संकल्पना के अनुकूल नहीं होगा। अधिकाधिक छात्र या अभिभावक अपनी सोशियल मीडिया एकाउंट से अपने मित्र - कुटुम्ब इत्यादि के समूहों में भेजे तभी अधिक लोग कथा सुनेंगे और इसका प्रचार अधिक होगा।
संस्कृत संभाषण और संस्कृत अभ्यास मुख्य रूप से तीन कारणों से जनप्रिय हो सकता है। संस्कृत यह – 1)आजीविका तथा धन प्रदायक 2)विकास या स्वास्थ्य में लाभकारक 3)प्रतिष्ठादायक। इनमें से तीसरा कारण “प्रतिष्ठादायक” इस वर्तमान योजना के साथ जुड़ जाए तो बहुत ही शीघ्र इसका प्रसार होगा, किन्तु यह हम सब के अधीन है। संस्कृत में कथाकथन प्रतिष्ठा का विषय बनना चाहिए। पहले भारत में अंग्रेजी पढ़ना प्रतिष्ठा का विषय था हम सब जानते हैं कि अंग्रेज शासन के समय अंग्रेजी बोलना, टाई सूट इत्यादि पहनना, घोड़े की सवारी करना इत्यादि प्रतिष्ठा का विषय माना जाता था। अभी भी अनेक अभिभावक अपनी संततियों का अंग्रेजी बोलना गौरव का विषय मानते हैं। संस्कृत में कथा बोलने वाले छात्र व बच्चे की प्रशंसा हो, सम्मान हो, अनेक स्थानों पर चर्चा हो, बच्चों के माता-पिता की भी प्रशंसा व चर्चा हो, पारिवारिक व सामाजिक मिलन में बच्चों से कथा बुलवाई जाए, फेसबुक इत्यादि में कथा का व्यापक प्रचार हो, ऐसा हम सबको प्रयत्न करना चाहिए। हम किसी के घर जाएँ और घर में यदि कोई बच्चा है तो संस्कृत में कथा सुनाओ ऐसा कहें।
संस्कृत शिक्षकों को तो यह कार्य करना ही चाहिए किन्तु यह कार्य केवल संस्कृत शिक्षकों का ही है ऐसा नहीं सोचना चाहिए। सभी संस्कृतप्रेमियों को यह कार्य करना और करवाना चाहिए। प्रत्येक घर में यह कार्य हो, जो संस्कृत नहीं जानते हैं वो भी इस कार्य में लगे यही इस कार्यक्रम की विशेषता होगी।
जिन बच्चों या अभिभावकों की फेसबुक आईडी इत्यादि नहीं है उनकी व्यवस्था हम सबको करनी चाहिए। प्रत्येक शिक्षक संस्कृत-कार्यकर्ता में यही स्पर्धाभाव होना चाहिए कि वह कितने छात्रों व बच्चों के द्वारा कितनी कथाओं का वाचन करवाएगा?
प्रत्येक बच्चे की वाणी संस्कृत-कथा-कथन से पवित्र हो, प्रत्येक कथा सैकड़ों कानों तक पहुँचे, प्रत्येक शिक्षक के प्रयत्न से हजारों घरों में प्रतिदिन संस्कृत का श्रवण हो, प्रत्येक संस्कृत-अनुरागी के प्रयत्न से लाखों हृदय में संस्कृत अनुराग उत्पन्न हो और हम सबके प्रयत्न से संस्कृत माता करोड़ों घरों में पुनः निवास करे ।